Thursday 29 October 2015

"वृक्ष और मैं"

तू भी पृथ्वी का वासी मैं भी
जहां भी तू खड़ा है वह की शान है,
और मैं शान के लिए बैचैन जीव
तू सुख दुःख से परे और मैं सुख दुःख के
 चक्रव्यहू का अभिमन्यु,

तू आनंद का प्रतिक
और मैं सदैव बाहर आनंद खोजता
 मेरा  आनंद भविष्य  मैं है
किसी दूसरे में है,कही दूर है
छूने दो मुझे उस आनंद को
जो  तुझमे जड़ से  लेकर
 पत्ते पत्ते में है,हर फूल में है,

तू रक्षक है,बसेरा है ,दोस्त है ,
मुझसे भक्षक ,बसेरा छीननेवाला 
व शत्रु  जैसे नाम जुड़े है,
तू देता है ,मैं छीनता हूँ ,
तू लुटाता  है ,मैं लूटता हूँ

मैं तुझसा  होऊ ,यह मेरा  सपना है,
बन जा मेरे लिए बोधि वृक्ष
ताकि मैं भी बुद्ध बन जाऊॅ
शायद तभी तुझमे और मुझमे
कोई अंतर न होगा
दोनों आनंद होंगे बस आनंद |


















Monday 26 October 2015

"मशीन  "


मैं इंसान की तरह  पैदा हुआ  था 
मेरा नामकरण हुआ 
फिर मशीनिकरण हुआ 

मशीन की तरह लंबे समय तक 
काम करने के बाद 
पुरानी मशीन की  तरह हटा दिया गया 

 कुछ मशीन ज्यादा उत्पाद दे जाती है 
तो कुछ कम 
ज्यादा उत्पादन देनेवाली मशीन 
की खबरे छपती है ,मूर्तिया बनती है 

कम उत्पादन वाली मशीन को 
एक या दो पीढ़ी याद कर लेती है 
और कहती है वह मशीन 
थोड़ा और काम कर लेती 
तो आज हम सुखी होते ।


"जीवित "


मात्र दिल का धड़कना
जिन्दा रहने की निशानी नहीं
दिल का किसी  श्रेष्ठ उद्देश्य के लिए 
धड़कना
जीवित रहने कीं निशानी है|

"बुध्द का मध्य मार्ग"

बुद्ध  के  मध्य  मार्ग में
 न दोस्त है और
न ही  दुश्मन
केवल  करुणा है

अति प्रेम में दोस्त मिलता है
 और घृणा की अति में दुश्मन

 प्रेम की अति में दोस्ती का उत्साह
घृणा की अति में दुश्मनी की जलन

मध्य न दोस्त का
न दुशमन का

वहां तो सिर्फ करुणा
का पुष्प  खिला है
जो बुद्ध ने महाकश्यप को
दिया था 

"तृष्णा"

कुछ भी हाथ न आएगा
अस्तित्तव में विलीन होने का अवसर है ,
दुःख की भी अवधि है
सुख की भी
कुछ भी निश्चिंत नहीं है

मृतकों के समाने क्या दर्शना
मृतकोंसे क्या जीतना

मृतकों में क्या सजना सवाँरना
उनसे अच्छा कफ़न क्या पहनना
उनसे ज्यादा क्या मरना

प्रतिपल जागने का अवसर है
देख सको तो देखो

हर पल जागने का अवसर है
हर पल अवसर है
अस्तित्व में विलीन होने के लिए|

"अति उत्साह "

अति उत्साह हो तो सयंमित हो जाओ
बुद्ध मना करते  है ,अति उत्साह के लिए
अति हीनता हो तो भी सयंमित हो जाओ
बुद्ध अति हीनता के लिए भी मना करते है

मध्यमार्ग में धीमे धीमे श्वास लो
शांत मन,मंद मंद मुस्कान
जो कृतज्ञता से भरी हो

हलकी हवा के झोके से
चेहरे पर ठंडक हो ,तृप्ति हो
तूफान में भी मध्यमार्ग का दिया
जलता है
अगर मध्यमार्ग का हो तो |!!




"कुछ लोग"

कुछ लोग कहते हैं मैं
छोटी छोटी कविताओ को
पड़कर शांत हो जाऊ
न अक्षर,न शब्द ,न रूप
मुझे शांत कर पाएंगे
भिखारी कहता है भीख
का इन्तजार ,तृप्त हो जाओगे
मेंढक कहता है ,पानी का इंतजार कर
तृष्णा समाप्त हो जाएगी
मक्खी कहती है किसी के
जूठन फेकने का इन्तेजार कर
भूख  मिट जाएगी
मेरी चाह तुम्हारी चाह में नहीं
मेरी भूख तुम्हारी जैसी नहीं
तृष्णा को न शांत करना
न तृप्त करना है
तृष्णा ही न रहे
ऐसा करना है|

"विरोध और समर्थन"


समर्थन और विरोध निजी होते है
यह व्यक्ति की समाझदरी और मूर्खता
पर  निर्भर करता है  

सुकरात दृढ़ थे 
की जो गलत है वो गलत है 
उसे सही क्यों मानो
और विष पि गए 

अरस्तु थोड़े लचीले हुए
अवसर के अनुसार चले 
 जीवन  को बचाते हुए चले 
उन्होंने मूर्खो को भी सही कहा
और समझदारो को भी सही कहा 

जो समझ गया वह समझदार 
नहीं तो …..😉

 

Sunday 25 October 2015

"मत्स्यावतार"

कभी कभी एस धरा 
की गति में रूचि नहीं रह जाती है,
जो पीना था यहाँ
पी लिया,अब कुछ
बाकी न रहा,
समुंदर की मछली
तालाब में बैचैन हो जाती है
कीचड़ मैं श्वास लेना
मुश्किल हो जाता है,
न तो खाद्य पधार्थ भाते है
न ही किताबे
सार जो था पी लिया
अब कुछ और चाहिए
शायद यहाँ नहीं 
कही और मिलेगा
नया स्वाद नया रोमांच
नया अनुभव
कुछ ऐसा जो अभी भी
बुद्ध,महावीर के धयान
में झलकता है
शायद उनके आँख खोलने
की देर है
और मेरे बंद करने की |

"उधार"

कुछ समय उधार लिया था
अब जिंदगी से चुका रहा हूँ
अगर कुछ बाकी रह गया
तो फिर से जिंदगी लेनी होगी
समय का उधार तभी चुकेगा
जब ईश्वर मैं विलीन होने की
 योग्यता आ जाएगी|

"चोट "

चाहिये ऐसा जो लगातार 
हमारे अहंकार पर 
चोट लगाता  रहे 
अहंकार का पोषण मुझे भटकता रहा 
अहंकार के पोषित करने 
 वाले  लोग 
मुझे गुमराह  करते  रहे । 

अचानक जब किसी ने अहंकार 
पर  चोट की,तो मैं बोखला  गया 
हतप्रभ रह गया 
क्रोधी हो गया 
विध्वंसकारी हो गया 

भीतर बैठा परमात्मा मौन था 
शांत था ,ठंडी हवा की तरह 
मंद मंद मुस्कुरा रहा था 
मैं परमात्मा से अलग हो गया परन्तु
जब पुनः परमात्मा में 
विलीन हुआ तो सब भूल गया 
और  मौन हो गया ।



"प्रेम"

कुछ नकारत्मक  जब  जीवन मे 
बड़ जाता है ,
तब हमे किसी  से प्रेम हो जाता  है 
हम सदा विपरीत  ध्रुव 
तलशते हैं ।
मन को  गहन शांति
 विपरीत से प्रेम करने पर ही मिलती है 
Photograph:Prabhu Parmar

"मित्र"

अपने कामकाज के कारण
मित्रो से मिलना ना हो सका
कुछ दुश्मनों ने दिल दुखाया तो 
मित्रो की याद आयी
धन्यवाद उन दुश्मनों का जो
मित्रो की याद दिलाते है
और उनसे गपशप
करने का मोका देते हैं|
Photograph:Prabhu Parmar

"शत्रु"

ऐ मेरे विपरीत ध्रुव
तुम वो सब करते हो जो मैं नहीं 
चाहता हूँ
मैं समय का पाबंद,तुम समय के
 प्रति बेपरवाह हो,
जिन परिस्थियों से मैं डरता हूँ
तुम वहा निर्भय रहते हो|
जो रंग मुझे पसंद नहीं,तुम उसी
रंग मैं रंगे हो
जो संगीत मुझे कर्कश लगता है
वही तुम्हारे जीवन का संगीत है
जो भी मुझे नापसंद है वह तुममे
पोषित होता है
शत्रु तुम आशा देते हो 
जीवन की का ध्येय देते हो 
तुम्हारे बिना जीवन में नमक कहाँ!!!!


"दुश्मन"


तुम्हे नहीं पता,मुझे तुम्हारी
कितनी जरुरत है,
आजतक तुमने मुझे मेरे होने का एहसास कराया 
मेरे कमजोर बिन्दुओं पर तुम्हारे ही निशान है,
मेरे भय को,पीड़ा को तुमने ही मुझे दिखाया 
मुझे नहीं लगता,तुम्हारे बिना मेरा जीवन है
जागरण का कारण हो तुम
सयमं का कारण हो तुम
मैं नहीं चाहता  की 
तुम नहीं रहो,
तुम हमेशा रहो
मेरे बुद्ध बनने तक।

Saturday 24 October 2015

"आवरण"

क्यों नहीं हटता है ,यह आवरण आत्मा पर से,
छुपा रखा है इसने अनन्त ज्ञानस्वरुप को
आवरण में  ,कैद रहना स्वभाव बन गया है

आवरण के भीतर प्रतिपल मरता हु|
आवरण के भीतर सुख है, दुःख है,
पीड़ा है,वासना है,मोह है,अपेक्षा है
नहीं खोना चाहता हु इन सबको
क्योकि आवरण के भीतर रहकर
अपनी तुलना कर पाता किसी से
बेहतर हूँ ,बेहतर  हूँ ,कुछ लोगो से
उन्हें निक्कम्मा समझने का सुख मिलता है,

कृपा करने का मलमली एहसास होता है,
कोई मुझसे गरीब है,कमजोर है
लाचार है,ऐसा  देखता हूँ 
आवरण के भीतर से
कभी कभी किसी का प्रेम
मेरे आवरण को छिनने लगता है

मै डरकर पीछे हटता हु  और आवरण को कस पकड़ता हूँ
डरता हूँ,डरता हूँ की आवरण हट गया तो सत्य सामने आ जायेगा
सत्य सामने आ जायेगा तो मेरा मेरा अहंकार इर्ष्या,लोभ खो जायेंगे
मैं  किसी से कम या किसी से ज्यादा न रह पाउँगा

मैं जो बना हूँ,सुख से,दुःख से
क्रोध से,वासना से,अपेक्षा से,
अहंकार से,इर्ष्या से,तुलना से 
खो जाऊंगा
मैं डरता हूँ,स्वय को खोने से

कृष्ण याने याने आवरण रहित
जिसमे कुछ भी छुपा नहीं है
जिसमे विलीन हुए,तो फिर नहीं खोज पाओंगे
स्वयं को
 कृष्ण हो जाओगे.
कैसा मूढ़ हूँ,कैसा अज्ञानी हु 

आवरण मैं कैद हूँ,स्वयं को कैद कर रखा है
और कृष्ण होने से डरता हूँ|


"संतोष का सूत्र"

जैसे ही कार्य, जिसे मे टाल रहा था
पूर्ण किया,संतोष को पाया
संतोष से किया भोजन
संतोष से पीया पानी
संतोष से ली श्वास
अमूल्य होती है
झूठा संतोष तो होता ही नहीं है|

"स्थिर और चलायमान"

समय स्थिर रहा मैं बदलता रहा
पटरी स्थिर रही रेलगाड़ी दोड़ती रही
हर ध्वनी और द्रश्य मुझे डगमगाते रहे
द्रश्य बदलते रहे ध्वनि बदलती रही
मैंने सबकुछ जानना चाहा
सुनना चाहा
पर दूर से कुछ और ही सुनाई दिया और दिखाई दिया
मेरे सहयात्री जो शायद दूसरी बार
यात्रा कर रहे थे,
उन्होंने हँसकर कहा
यह वो नहीं जो तुम समझ रहे हो
तब समझ में आया सब समझ पर निर्भर है
बाहर स्थिर है
भीतर मन चलायमान है|

"फिसलन"

कही पहुँचना है, पर राह में फिसलन बहुत है
रहीम कहते है प्रेम की गली में
बहुत फिसलन है, यहाँ चीटी के भी पैर फिसलते है
और हम है,जो बैल(अहंकार)
लादकर चलते है

उद्देश्य सही, राह  सही 
 फिर भी क्यों फिसलता हुँ पता नहीं

जिस तरह हल्का सा हवा का झोंका 
अग्नि की लों को हिला देता है
मन भी ऐसे ही डिग जाता है
लो सीधी रहे, ध्यानस्थ रहे
उसके लिए उसे साक्षी की सुरक्षा
देनी होगी
साक्षी की साधना ही असल उद्देश्य है, वरना
टिमटिमाती जिंदगी

हल्के से हवा के झोके से हार जाएगी|

"जीवन और जीवन के बीच"

श्वास और श्वास के बीच
वह जगह जहाँ  जीवन नहीं होता
यदि हम वह खोज ले
पा ले, तो हम मन से मुक्त हो जायेंगे
बुद्ध वहीं स्थिर है
और जीवन मे होने वाली घटनाओ के साक्षी है|
बुद्ध देखते है, श्वास का आना और जाना
उन्हें वहा कुछ भी प्रभावित नहीं कर पाता है|
वहा ना म्रत्यु है न ही जीवन है
अकर्म म्रत्यु है और कर्म जीवन है
बुध्त्व है दोनों के बीच |

"प्रयास "

इस देह से कुछ अच्छा हो जाये
उर्जा का स्त्रोत इस देह को अच्छी दिशा दे
मन तो हमेशा भटकाएगा
कभी एकदम अच्छा ,तो कभी बुरा हो जायेगा
मन हमेशा किसी से ज्यादा तो
किसी से कम  बताएगा
मन को हीनता में गिरना या
अहंकार में उठना  पसंद है
जीवन न तो  शिखर पर है
न तल में है ,
शिखर पर अहंकार व
तल में में हीनता है
मध्य में ठहराव है
जो कठिन प्रतीत होता है
क्योकि हम गिरना और उठना
और फिर गिरना और फिर उठने के 
प्रयास को जीवन कहते है
पर बुध्त्व तो मध्य में है|

"बुद्ध का प्रयास"

राजपाट छोड़ा
सुख सुविधा छोड़ी
भोजन भी छोड़ा
त्याग को  जिया
 आनंद को पाया
 बुद्ध का प्रयास
आनंद की कुंजी बन गया|

"बुद्ध और जीवन"

हर शवास का आना और जाना
और उसे देखना
हर विचार को उठते और गिरते हुए देखना
न विचारों के साथ उठाना
न हे उनके साथ गिरना
मन तो है ही नहीं
मन नहीं,तो क्रोध नहीं
भय नहीं, वासना नहीं
सुख नहीं और दुःख भी नहीं
बस आनंद और आनंद
और आनंद है |

"बुद्धत्व"

हर कोई नहीं समझता बुद्ध को,
बुद्ध को ना पीड़ा है ना संताप
ना ख़ुशी है ना सुख
वे बस आनंद है 
बुधत्व एक अवस्था है |





   "अपशब्द"

"बुद्ध ने न मिठाई ली न गाली"
एक अभागे गाँव से बुद्ध गुजरते थे,
कुछ  नासमझ लोग
उन पर हँसे, उनका मजाक उड़ाया
उन्हें गाली दी
पर बुद्ध शांत थे , विनम्र थे

अगले गाँव ने स्वंय को भाग्यशाली समझा
और उन्हें मिठाई के थाल दिए
बुद्ध ने प्रेम से अस्वीकार कर दिया
आनंद विस्मृत थे!
उन्होंने पूछा ऐसा क्यों ?
बुद्ध मुस्कुराये और कहा
मुझे दोनों की आवश्यकता नहीं है।