Saturday 24 October 2015

"आवरण"

क्यों नहीं हटता है ,यह आवरण आत्मा पर से,
छुपा रखा है इसने अनन्त ज्ञानस्वरुप को
आवरण में  ,कैद रहना स्वभाव बन गया है

आवरण के भीतर प्रतिपल मरता हु|
आवरण के भीतर सुख है, दुःख है,
पीड़ा है,वासना है,मोह है,अपेक्षा है
नहीं खोना चाहता हु इन सबको
क्योकि आवरण के भीतर रहकर
अपनी तुलना कर पाता किसी से
बेहतर हूँ ,बेहतर  हूँ ,कुछ लोगो से
उन्हें निक्कम्मा समझने का सुख मिलता है,

कृपा करने का मलमली एहसास होता है,
कोई मुझसे गरीब है,कमजोर है
लाचार है,ऐसा  देखता हूँ 
आवरण के भीतर से
कभी कभी किसी का प्रेम
मेरे आवरण को छिनने लगता है

मै डरकर पीछे हटता हु  और आवरण को कस पकड़ता हूँ
डरता हूँ,डरता हूँ की आवरण हट गया तो सत्य सामने आ जायेगा
सत्य सामने आ जायेगा तो मेरा मेरा अहंकार इर्ष्या,लोभ खो जायेंगे
मैं  किसी से कम या किसी से ज्यादा न रह पाउँगा

मैं जो बना हूँ,सुख से,दुःख से
क्रोध से,वासना से,अपेक्षा से,
अहंकार से,इर्ष्या से,तुलना से 
खो जाऊंगा
मैं डरता हूँ,स्वय को खोने से

कृष्ण याने याने आवरण रहित
जिसमे कुछ भी छुपा नहीं है
जिसमे विलीन हुए,तो फिर नहीं खोज पाओंगे
स्वयं को
 कृष्ण हो जाओगे.
कैसा मूढ़ हूँ,कैसा अज्ञानी हु 

आवरण मैं कैद हूँ,स्वयं को कैद कर रखा है
और कृष्ण होने से डरता हूँ|


No comments:

Post a Comment