Tuesday, 30 September 2025

डर का चेहरा

 


तेरा डर तुझे जोकर बना देता है,

हँसी के पीछे दर्द छुपा देता है।

चेहरे पे मुस्कान, दिल में तूफान,

हर खुशी को बना देता है एक मज़ाक़।


तेरा डर तुझे ग़ुलाम बना देता है,

बेबसी के बंधनों में जकड़ा देता है।

चुपचाप सहता है, कुछ कह नहीं पाता,

आज़ादी का रास्ता भी दिख नहीं पाता।


तेरा डर तेरे घर का उजाला बुझा देता है,

परिवार की हँसी को भी सज़ा बना देता है।

बचपन की मासूमियत खो जाती है,

खामोशियाँ रिश्तों में सो जाती हैं।


तेरा डर तेरे ख़्वाबों को धीरे-धीरे मारता है,

हर उम्मीद को अंदर ही अंदर ख़ारिज़ करता है।

जो ऊँचाइयाँ छूनी थीं तूने कभी,

तेरा डर उन्हें ज़मीन में गाड़ता है अभी।


तेरा डर तेरे जुनून को जलाता है,

तेरी रचनात्मकता को कुचलता जाता है।

जो आग थी सीने में, वो राख बन गई,

तेरी खुद की पहचान भी धुंधला गई।


पर सुन, अब भी एक आवाज़ अंदर से आती है —

" उठ! डर से मत डर, अब खुद को आज़ाद कर!"

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