"माँ "
पंख खुलने की पीड़ा सहनी होगी
उड़ने का साहस लाना होगा
घोंसले से कूदना होगा
नहीं तो माँ धकेल देगी
घोंसले में आराम है
माँ चाहती है ,की अब उड़ जाओ
क्योकि अब घोंसला तो होगा
पर माँ न होगी
माँ अब घोंसले जैसी लघु नहीं
संसार हो गयी हैं
विराट हो गयी है
अब माँ मुँह में खाना नहीं देगी
अब माँ में स्वयं को ढूंढना होगा
माँ को पाने लिए साथी ढूंढना होंगे
उन्ही मैं माँ को ढूंढना होगा
माँ ने विविधता दिखाई
माँ ने उड़ना सिखाया
अब मुझे माँ में ही उड़ना है
गिरा तो भी माँ की गोद में ही गिरूंगा
क्या हुआ गहरी नींद भी आ गई तो
माँ की गोद ही ऐसी है।
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