कुछ कुत्ते हमेशा भौंकते हैं
(दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक कविता)
कुछ कुत्ते हमेशा भौंकते हैं,
शोर मचाते हैं, जब हम चलते हैं।
वे आवाज़ें भीतर की कोई असुरक्षा हैं,
जो खुद को साबित करने को मजबूर हैं।
हर भौंकना एक डर का साया है,
अधूरी उम्मीदों का ग़म छुपाया है।
वे अपने अंदर की आवाज़ से लड़ते हैं,
इसलिए बाहर की दुनिया से खौफ खाते हैं।
पर ये समझना ज़रूरी है हमें,
कि भौंकना उनकी अपनी एक पुकार है।
वे हमें रोक नहीं सकते सच के रास्ते से,
बस अपने अंदर की बेचैनी से लड़ते हैं।
जब भी कोई मंज़िल की ओर बढ़ता है,
उसके पीछे कई सवाल भी चलते हैं।
कुछ सवालों का जवाब तो वक्त देता है,
और कुछ भौंकने वालों की खामोशी सिखाती है।
हमारे मन के भी कई ‘कुत्ते’ हैं,
जो डर, चिंता और शंका में भौंकते हैं।
अगर हम उन्हें समझकर शांत कर दें,
तो भीतर की राहें फिर से साफ़ हो जाएँ।
तो भौंकने दो उन्हें,
लेकिन सुनना अपनी आंतरिक आवाज़ को।
जो कहती है — बढ़ते रहो, रुकना नहीं,
अंधेरे से न डरना, उजाले की ओर बढ़ना है।
जीवन की राह में आवाज़ें बहुत होंगी,
पर हर भौंकने वाले में छुपी होती है एक कहानी।
समझो, सहो, फिर भी चलो अपने लक्ष्य की ओर,
क्योंकि असली जीत होती है — मन की शांति और आत्मविश्वास की दौड़।
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