Sunday, 29 June 2025

मन की उलझन, दिल की आवाज़

 मन की उलझन, दिल की आवाज़


जब नहीं मिलता किसी सवाल का हल,

और मन हो जाए एक खाली-सा पल।

जब कोशिशें लगें सब बेकार,

और आँखों में भर आए एक लाचार विचार।


सोचते हैं — क्या मैं ही गलत हूँ?

या फिर रास्ता ही कहीं अधूरा-सा चलता हूँ।

हर जवाब जैसे छुप गया हो कहीं,

और मैं… बस उलझा रह गया तन्हा यहीं।


कभी खुद से सवाल करता हूँ —

क्या सच में इतना कमजोर हूँ मैं?

या शायद ज़िंदगी आज फिर से

एक सबक सिखा रही है नए रंग में।


चुपके से माँ की वो आवाज़ याद आती है,

"बेटा, मुश्किलें भी गुज़र जाती हैं…"

पापा की वो नज़रें — बिना कहे कह जाती हैं,

"हार नहीं माननी, उम्मीद बाकी है…"


तो उठता हूँ फिर से, टूटा नहीं हूँ अभी,

रास्ता भले थका दे, राही थका नहीं कभी।

क्योंकि हर समस्या के उस पार भी एक सवेरा है,

हर आंसू के पीछे भी एक बसेरा है।

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