"नमक का पुतला"
नमक का पुतला घबराया सा
भाग रहा था ,
बदल घुमड़ रहे थे
बिजली चमक रही थी
नमक का पुतला अस्तित्व
बचाने की फ़िराक में था
वह प्रकृति को कोस रहा था
बरसात क्यों होती हैं
क्या प्रकृति को हमारी फ़िक्र नहीं
नमक का पुतला तनाव में था
अपने दुर्भाग्या पर रो रहा था
आँसू उसे गला रहे थे
तभी उसने बुद्ध को देखा
वे भी नमक के बने थे
वे ध्यानस्थ होकर
बारिश का इंतज़ार कर रहे थे
नमक के पुतले ने पूछा
आप गलने से डरते नहीं
बुद्ध ने कहा -मैं नमक का पुतला नहीं
इस संसार का नमक हुँ ,
पास ही ईसा खड़े मुस्कुरा रहे थे
और यही कहानी
रमकृष्ण परमहंस अपने
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