Monday, 26 October 2015

"तृष्णा"

कुछ भी हाथ न आएगा
अस्तित्तव में विलीन होने का अवसर है ,
दुःख की भी अवधि है
सुख की भी
कुछ भी निश्चिंत नहीं है

मृतकों के समाने क्या दर्शना
मृतकोंसे क्या जीतना

मृतकों में क्या सजना सवाँरना
उनसे अच्छा कफ़न क्या पहनना
उनसे ज्यादा क्या मरना

प्रतिपल जागने का अवसर है
देख सको तो देखो

हर पल जागने का अवसर है
हर पल अवसर है
अस्तित्व में विलीन होने के लिए|

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