"वृक्ष और मैं"
तू भी पृथ्वी का वासी मैं भी
जहां भी तू खड़ा है वह की शान है,
और मैं शान के लिए बैचैन जीव
तू सुख दुःख से परे और मैं सुख दुःख के
चक्रव्यहू का अभिमन्यु,
जहां भी तू खड़ा है वह की शान है,
और मैं शान के लिए बैचैन जीव
तू सुख दुःख से परे और मैं सुख दुःख के
चक्रव्यहू का अभिमन्यु,
तू आनंद का प्रतिक
और मैं सदैव बाहर आनंद खोजता
मेरा आनंद भविष्य मैं है
किसी दूसरे में है,कही दूर है
छूने दो मुझे उस आनंद को
जो तुझमे जड़ से लेकर
पत्ते पत्ते में है,हर फूल में है,
तू रक्षक है,बसेरा है ,दोस्त है ,
मुझसे भक्षक ,बसेरा छीननेवाला
व शत्रु जैसे नाम जुड़े है,
तू देता है ,मैं छीनता हूँ ,
तू लुटाता है ,मैं लूटता हूँ