हमें होश चाहिए!!!!
पर हम बेहोशी से बाहर नहीं आना चाहते
बेहोशी की पीड़ा !!!!!
हमारे लिए सुख का छद्म वेश धारण कर लेती है।
हम शुतुरमुर्ग की तरह अपने गर्दन छुपाए रहना चाहते हैं ।
हम वास्तविकता से दूर रहना चाहते हैं।
जैसे होश मिला तो वह सारे सुख लुप्त हो जाएंगे जो हमें( जीवन घातक होते हुए भी) सुख दे रहे थे।
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