Saturday, 21 November 2015

"पलायनवादी मन"

हर बात से ,हर कर्म से 
पलायन करता है मन 
श्रम से घबराता हे मन 
आराम को चाहता हे मन 
कुछ सीखना नहीं चाहता हे मन 
आत्मा जो निश्छल हैं ,एकग्रा है 
उसे ढकता है मन 
सच पर काला पर्दा है मन 
स्वार्थ सिद्धि के लिए 
मन को प्रसन्न करता है  मन 
हर मन दूसरे मन पर काबू 
पाना चाहता है 
मन दूसरे मन को लोभ देता है 
मन दूसरे मन को लुभाता है 
मन दूसरे मन पर राज करना 
चाहता है 
मन की दुनिया में सब राजा है 
सारे मन लड़ते है ,चालबाज़ी करते है 
पर जीतता कोई नहीं 
बस एक दूसरे को पीड़ा ,
घोर पीड़ा देते है। 

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